श्री हनुमान चालीसा हिंदी में
हनुमान चालीसा पढ़ने से आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह के कई लाभ हो सकते हैं:
भक्ति और जुड़ाव: रोजाना हनुमान चालीसा पढ़ने से भगवान हनुमान के प्रति भक्ति और जुड़ाव की भावना गहरी हो सकती है, जो अपनी ताकत, भक्ति और वफादारी के लिए पूजनीय हैं। यह अभ्यास व्यक्तियों को ईश्वर के करीब महसूस करने और देवता के साथ एक मजबूत बंधन विकसित करने में मदद कर सकता है।
सुरक्षा और आशीर्वाद: कई लोगों का मानना है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से भगवान हनुमान का आशीर्वाद और सुरक्षा मिल सकती है। जीवन में बाधाओं, चुनौतियों और नकारात्मक प्रभावों पर काबू पाने में उनकी मदद लेने के लिए अक्सर इसका पाठ किया जाता है। नियमित पाठ से सुरक्षा और मार्गदर्शन की भावना पैदा हो सकती है।
शक्ति और साहस: भगवान हनुमान को अक्सर साहस, शक्ति और दृढ़ता से जोड़ा जाता है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ने से व्यक्तियों को साहस और दृढ़ संकल्प के साथ अपनी चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा मिल सकती है। यह कठिन समय के दौरान प्रेरणा और आंतरिक शक्ति के स्रोत के रूप में काम कर सकता है।
बाधाओं को दूर करना: ऐसा माना जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से किसी के जीवन से बाधाओं और बाधाओं को दूर करने में मदद मिल सकती है। चाहे वे शारीरिक, भावनात्मक या आध्यात्मिक बाधाएँ हों, नियमित पाठ से व्यक्तियों को उनसे उबरने और अपनी जीवन यात्रा में आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
मन की शांति: हनुमान चालीसा जैसे पवित्र ग्रंथों को पढ़ने से मन पर शांत प्रभाव पड़ता है और आंतरिक शांति मिलती है। यह प्रतिबिंब और आध्यात्मिक संबंध का क्षण प्रदान करता है, जो तनाव, चिंता और चिंताओं को कम करने में मदद कर सकता है।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत: कई लोगों के लिए, हनुमान चालीसा सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक भी है। इसे प्रतिदिन पढ़ने से व्यक्तियों को अपनी जड़ों, परंपराओं और समान प्रथाओं को साझा करने वाले विश्वासियों के बड़े समुदाय से जुड़ने में मदद मिल सकती है।
सकारात्मक ऊर्जा: माना जाता है कि हनुमान चालीसा जैसे पवित्र छंदों का पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा और कंपन उत्पन्न होता है। यह सकारात्मक ऊर्जा किसी के परिवेश को प्रभावित कर सकती है और अधिक सामंजस्यपूर्ण और उत्थानशील वातावरण में योगदान कर सकती है।
दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे।।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

No comments:
Post a Comment